Last Updated on May 8, 2016 by
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I wrote this long back. Needless to say it’s a break off poem. Needless to say you will need handkerchief to read this. Many have cried when I shared this many moons ago. PLS DONT COPY PASTE THIS AND SHOW IT AS YOUR POEM, I WILL SEND POLICE AFTER YOU, I GUARANTEE.
तुम…
मैदान में तनहा बैठ जब मसलता हूँ दूब को
उसकी खुशबु तेरी याद दिलाती है.
जब दूब में घात लगाये कोई काँटा चुभ जाए
यादें और पुरजोर हो जाती हैं.
वो पीपल का पेड़ याद है?
जो बारिश में चांदी सा चमकता था
और पतझड़ में हम पे बरसता था
आज गया था मैं वहाँ
हमने जो उसपे नाम कुरेदे थे उसको देखने
उस पल को एक बार फिर जीने
वो पेड़ मुझे एकटक देख रहा था
बेचैन सा, उदास सा…
पहले जैसा मुस्कुरा नहीं रहा था…
शायद वोह भी तुम्हे ढूंढ रहा था.
वो नजाकतें वो खिलखिलाहटे टटोल रहा था.
वोह चाय की प्याली भी शायद भूल गयी होगी?
जिसे झूठा करके तुम मुझे देती थी.
जिसे लबो से लगा के मैं अपने लब लाल करता था.
और फिर तुम बेबाक बेलगाम हस्ती थी..
वो प्याली भी आज उदास है.
मुददत हुई उस पे लाल स्याही जो नहीं चढ़ी.
वो चूड़ियों की दुकान आज भी मेरे रास्ते में पढ़ती है
जहाँ तुम घंटो लगाती थी लाल नीली हरी चुनने में
आज वहां ताला लग गया है.
उन चूड़ियों ने खनकना जो बंद कर दिया.
और वो सिगरेट के कश जो मुझसे छीन कर तुम पीती थी.
नजरें चुरा के , डर डर के पीती थी.
उस सुफेद पीली कलम में अब वो नशा नहीं रहा
उसमे हमारे अफसाना लिखने का अरमान अब नहीं रहा.
और वो मंदिर की घंटियाँ भी कितनी आसानी से भूल गयी?
जिन्हें बच्चों जैसे उचक उचक कर तुम बजाती थी
फिर सहसा संजीदा हो कर आँखे मींचे
खुदा जाने क्या दुआएँ मांगती थी
उस मंदिर में अब कहाँ कोई आता जाता है
लोगो का दुआओं से विश्वास जो उठ गया…
क्या जवाब दूं मैं इन्हें
क्या समझाऊं और क्या फुस्लाऊं?
अब मैं इस काबिल ही कहाँ रहा
की खुद कुछ समझ पाऊं….
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What an amazing poetry.. so correctly described , full of emotions!
What can I say … it is heart rending !
Sadness can be beautiful too.. Felt like being a co-traveller on your journey.. you have really expressed each word so beautifully.. I am awed…
It’s a heartbreaker yet you beautifully described
Heartbreaking and yet beautiful.
Thank you Aditi 😊